भावनात्मक कविताएँ: यादें, संघर्ष, और जीवन के रंग

प्रेम और आत्म-स्वीकार का संगम: जब कविता बनती है जीवन का आईना

"मैं सपनों का राही और तुम वास्तविकता की उड़ान" — ये पंक्तियाँ सिर्फ कविता नहीं, आत्मा के संवाद का एक माध्यम हैं। कवि किशोर चौहान ने इस रचना में प्रेम, स्वीकृति और दो विपरीत व्यक्तित्वों की सुंदर संगति को दर्शाया है। जहाँ एक ओर "मैं" भ्रमित, उलझा हुआ और अधूरा है, वहीं "तुम" स्पष्ट, सुलझी और पूर्ण हो। यह कविता इस बात को दर्शाती है कि जीवन में सच्चा साथी वही होता है जो आपकी कमियों को स्वीकार कर उन्हें अपनी समझ से संवारता है। यह रचना हर दिल को छू जाने वाली प्रेम की परिभाषा है।

Romantic love poetry with heart-touching lines expressing deep emotions and affection


मैं सपनो का राही और तुम
वास्तविकता की उड़ान प्रिय

मैं गणित की उलजन और तुम
हिंदी जैसी सुलजन प्रिये

मैं नासमझी का शिकार और तुम
समझदारी की मिसाल प्रिये

मैं एक लेख और तुम
इस लेख का भाव प्रिये!

मैं किताब_ए_जिंदगी मान प्रिये
तुम उसका लिखा ज्ञान प्रिये!

-किशोर चौहान

💌 शब्दों में बसा अधूरा प्रेम: जब मीरा बन जाए प्रेम की परिभाषा

"मैं बिन व्याकरण के कुछ बात लिखता हूं.." — यह पंक्तियाँ केवल कवि किशोर चौहान की लेखनी नहीं, बल्कि दिल से निकली एक सच्ची पुकार हैं। कविता उस प्रेम की गहराई को बयां करती है, जिसमें व्याकरण, भाषा और नियमों से परे बस भावनाएं बोलती हैं। प्रेम को शब्दों में बाँधना कठिन है, लेकिन कवि का प्रयास वही मीरा बनकर उभरता है, जो अपने इश्क को पूजा की तरह अपनाती है। राजस्थान की पहचान बनी मीरा, इस कविता में प्रेम का प्रतीक बन जाती है — सच्चा, समर्पित और आत्मविस्मृत। यह रचना हर उस दिल की आवाज़ है, जिसने प्रेम को पूजा की तरह जिया है।

मैं बिन व्याकरण के कुछ बात लिखता हूं ,
मैं प्यार के कुछ शब्दों का आघात लिखता हूं,
पा नही सका अभी थोड़ा वही ज्ञान लिखता हूं ,
इश्क है उसे कितना ,
वही मीरा, जिसके नाम राजस्थान लिखता हूं!

-किशोर चौहान

🌾 गाँव से शहर तक की दूरी: जब आधुनिकता छीन ले जड़ें

"शोहरत के काम में इतना मशगूल है, गाँव की मिट्टी तो सिर्फ़ उनके पैरों की धूल है..." — कवि किशोर चौहान की यह कविता शहरीकरण और आधुनिकता की दौड़ में खोती मानवीय जड़ों की मार्मिक व्याख्या है। जिनके पास कभी ज्ञान था, वे आज खुदगर्ज़ बन बैठे हैं। यह कविता उस बदलाव पर सवाल उठाती है जिसमें इंसान अपनी असल पहचान—गाँव, माटी और संस्कार—को त्यागकर केवल दिखावे की दुनिया में जीने लगा है। यह रचना न सिर्फ़ आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करती है, बल्कि एक सामाजिक सच को सामने लाकर खड़ा करती है।


शोहरत के काम मे इतना मशगुल है
गाँव की मिट्टी तो सिर्फ़ उनके पैरों की धूल है

जिनको ज्ञान कुछ घना मिला
आज के दौर में खुदगर्ज बना मिला

आधुनिकता ने ये कैसे मोड़ दिया
उसने वो घर ,माटी, गाँव छोड़ दिया

-किशोर चौहान

"आधुनिकता में उलझा व्यक्ति, पीछे छूटते गाँव, मिट्टी और मूल्यों की भावनात्मक अभिव्यक्ति"

📖 ज़िंदगी एक नई किताब और अधूरी यादों का दर्द

कवि किशोर चौहान की कविता "ज़िन्दगी नई किताब है" ज़िंदगी के हर मोड़ को एक किताब के पन्ने की तरह प्रस्तुत करती है — जिसमें सफलता, असफलता, ग़म, अपनापन और बदलाव छुपे हैं। वहीँ दूसरी ओर, जब बीती यादें सपनों में लौटती हैं, तो मन फिर से कांप उठता है। उनकी दूसरी कविता "जब सपनों में भी याद वो आते हैं..." उन जज़्बातों को बयान करती है जहाँ प्रेम, पीड़ा और असहायता एक साथ बहते हैं। शब्दों के माध्यम से एक ऐसा चित्र खींचा गया है जिसमें हर पाठक खुद को पा सकता है — कहीं अधूरा, कहीं सहमा हुआ, लेकिन पूरी तरह से इंसानी।


ज़िन्दगी नई किताब है
ये ज़िन्दगी का नया पथ है

जैसे किताब का नया पृष्ठ है
इसी में सफलता, विफलता, गम है

इसमें मैं ,तुम ,और हम है
इसमें लिखा ज़िन्दगी का नया हिसाब है

ज़िन्दगी नई किताब है

-किशोर चौहान

"ज़िंदगी की किताब के नए पन्ने, जिसमें सफलता, विफलता और भावनात्मक रिश्तों की कहानी दर्ज है"


जब सपनो में भी याद वो जब आते है
हम वहा भी सहम जाते है।

जब ख़ुशी से गानों में जब प्यार गाते है
हम वहा भी सहम जाते है।

जब बातो में भी लोग उनकी बात लाते है
हम वहा भी सहम जाते है ।

जब कविताओं में उनको लिखना चाहते हैं
खैर छोड़ो हम यहा भी सहम जाते है।

-किशोर चौहान

🌊 यादों की गहराई और भवर में खोया मन

कवि किशोर चौहान की कविता "हम आज भी भवर में डूब रहे थे..." जीवन की असमंजस और संघर्ष को खूबसूरती से व्यक्त करती है। सफर के दौरान जीवन की कठिनाइयाँ, जैसे कागज की कश्ती की तरह, हमें डुबो देती हैं, लेकिन हम फिर भी किसी न किसी सहारे की उम्मीद में रहते हैं। दूसरी कविता "वो कितना याद आता है..." दिल की गहराई में बसी यादों को व्यक्त करती है। वह जो ज़िन्दगी में था, उसकी यादें समय के साथ भी कभी नहीं मिटतीं। यह रचना दर्शाती है कि कितनी भी दूरी हो, लोग और उनके पल हमेशा दिल में रह जाते हैं।

हम आज भी भवर में डूब रहे थे ।
अजीज तो हमारे भी खूब रहे थे।

हमारी भी कुछ ऐसी ही हस्ती रही थी।
सफर में शायद कागज की कश्ती रही थी।

अब हमे भी किसी तिनके का सहारा मिले ।
सफर के इस बीच भवर में एक किनारा मिले ।

-किशोर चौहान


वो कितना याद आता है
वो जो यादो में था वही याद आता है

वो जो बातो में था वही याद आता है
वो जो जहन में था वही याद आता है

वो जो अहम में था वही याद आता है
वो जो किस्से में था वही याद आता है

वो जो हिस्से में था वही याद आता है
भूलने के बाद भी याद आता है

वो कितना याद आता है

-किशोर चौहान

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